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Sunday, May 31, 2020

अंधभक्त किसे कहते हैं?

अंधभक्त किसे कहते हैं? और कैसे मिटेगी अंधभक्त की अंधभक्ति?


वर्तमान की गुरुकुल में पढ़ रहे छात्रों में से एक छात्र ने गुरु से पूंछा कि गुरुजी आखिर ये अंधभक्ति क्या होती है?

गुरुजी ने छात्र से अचंभित होकर पूछा कि वत्स आखिर तुम्हें अचानक अंधभक्ति के विषय में पूंछने के लिए क्यों सूझा?

दुविधा से ओत-प्रोत छात्र ने कहा-गुरुजी वर्तमान समय में मेरे ज्यादातर परिचित सोशल मीडिया में लिख रहे हैं  कि आजकल अंधभक्ति ज्यादा बढ़ गई है,इसलिए मेरे मन में सवाल आया कि आखिर ये अंधभक्ति है क्या?

तब गुरुजी मुस्कुराते हुए बोले वत्स- किसी भी शास्त्र या पुराण में अंधभक्ति की विवेचना अभी तक नहीं की गई है.इसलिए अभी तक लोग केवल भक्ति की परिभाषा ही जानते थे परन्तु वर्तमान समय में जरूरत से ज्यादा अंधभक्तों ने जन्म ले लिया है इसलिए अंधभक्ति की परिभाषा तय करने की जरूरत आ गई है.अतः सोशल मीडिया व व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी को साक्षी मानकर मैं आज अंधभक्ति की परिभाषा बताने जा रहा हूँ.परिभाषा में कोई भी संशय हो तो बिना डरे गुरुकुल के अनुच्छेद 19 के अभिव्यक्ति की स्वत्रंता के तहत आप लोग सवाल जरूर पूछ लीजियेगा .गुरुजी ने छात्रों से आगे कहा कि अंधभक्ति के पहले आपको भक्ति की परिभाषा बताना चाहूंगा

भक्ति - देवी भागवत के अनुसार ' पूजनीयों ' के प्रति प्रेम का भाव ही भक्ति है.यहां ' पूजनीय ' शब्द की अर्थ माता , पिता , गुरु आदि से है.भक्ति कई प्रकार की हो सकती है जैसे ईश्वर भक्ति,मातृ-पितृ भक्ति,गुरु भक्ति अथवा देशभक्ति.परन्तु आजकल समाज में  सभी जगह अंधभक्ति व्याप्त है.लेकिन फिर वही सवाल उठता है कि आखिर अंधभक्ति किसे कहते हैं?

अंधभक्ति का अर्थ है जब कोई भी भक्त सत्ता पर आंख बंद करके विश्वास करता है और सरकारी आंकड़ों को दरकिनार करके उसका अंधा पक्ष लेते हुए बिना तथ्य और सबूत के हवा में बातें करता हुआ हवाई विकास के पुल बनाता है ,उसे अंधभक्ति कहते हैं.

तभी उन्हीं छात्रों में से एक छात्र ने कहा कि गुरुजी जरा सरल व स्पष्ठ परिभाषा दीजिए ताकि आसानी से समझ आए.
गुरुजी ने मंद मुस्कान भरते हुए कहा वत्स- अंधभक्ति का अर्थ है कि जब लोकतंत्र में कोई  सत्ता के प्रति इतने ज्यादा विश्वास करने लगे कि उसे ना तो सत्ता की आलोचना सुनने का साहस हो और ना ही सरकारी आंकड़े को समझने का प्रयास करे.बस झूठे अंध विश्वास में आगे बढ़ते चले जाए,उसी को अंधभक्ति कहते हैं.

तभी छात्रों के सबसे पीछे वाली लाइन से एक आवाज आई कि गुरुजी मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है,आप जरा उदाहरण के साथ समझाने का कष्ट करें.

छात्र के इस निवेदन के बाद स्वयं गुरु ही व्याकुल हो गए.गुरूजी ने सोचा अगर मैं नाम लेकर उदहारण समझाऊंगा तो कहीं सोशल मीडिया के अंधभक्त मुझे ना ट्रोल करने लगे.परन्तु छात्र द्वारा जिद करने पर गुरूजी ने 56 इंच का सीना करते हुए बताना शुरू किया.
गुरूजी ने आगे कहा - वत्स पिछले 70 सालों से भारत को लूटा जा रहा था,देश में कहीं भी विकास नहीं हुआ था.इतना ही नहीं हिंदुत्व पूरी तरह से खतरे में था तब मोदी रूपी भगवान ने 2014 में जन्म लिया और भारत के लूटे गए खजाने(कालाधन) को वापस करवा लिया. विकास की गंगा बहने लगी. और हिंदुत्व पूरी तरह से सुरक्षित हो गया.मोदी जी द्वारा किए गए ऐतिहासिक कार्यों को देखकर सोशल मीडया सहित तमाम प्लेटफॉर्म में मोदी भक्त पैदा हो गए,उन्हें ही पौराणिक भाषा में अंधभक्त कहते हैं.और अंधभक्त की पूरी प्रक्रिया को अंधभक्ति कहते हैं.



गुरूजी के आगे कुछ और बोलते इससे पहले ही छात्र ने कहा लेकिन गुरूजी मैं तो मोदी सरकार के सरकारी मंत्रालय के आकंड़ो को पढ़ा हूँ.आपने जितना भी विकास बताया,रिपोर्ट्स की माने तो ,वो तो हुआ ही नहीं।

गुरूजी ने आगे कहा-वत्स तुम देशद्रोही मत बनो क्योंकि विज्ञापनों में वाकई विकास हुआ है.सरकारी आंकड़ों में नहीं हुआ तो क्या हुआ?
छात्र ने फिर सवाल किया- गुरूजी लेकिन अंधभक्त सरकारी रिपोर्ट्स को क्यों नहीं मानते हैं?

गुरूजी ने कहा-वत्स अंधभक्तों को विश्वास है कि भगवान मोदी हिंदुत्व की रक्षा कर रहे हैं और स्वयं भक्त भगवान के इस युद्ध में उनका सेना के रूप में मनोबल बढ़ा रहे हैं.इसलिए उन्हें सरकारी आंकड़ों पर यकीन नहीं होता है.

छात्र ने कहा गुरूजी आप आज के अंतिम सवाल का जवाब जरूर दीजियेगा,अंतिम सवाल है कि अंधभक्तों को सही मार्ग कब मिलेगा?
गुरूजी कुछ समय विचार करने के बाद बोले-वत्स अंधभक्ति का खत्म होना असंभव सा है क्योंकि सभी भक्तों को झूठे राष्ट्रवाद का सस्ता नशा दे दिया गया है.इसलिए अंधभक्ति का अंत होना जरा असंभव सा लगता है लेकिन फिर भी जब अंधभक्त स्वयं बेरोजगारी की वजह से अपने परिवार को नहीं पाल पाएगा,मंहगाई की वजह से बार-बार मारा जायेगा.और हिंदुत्व की रक्षा के लिए मॉब लिंचिंग करने के जुर्म में जेल जायेगतब उसकी अंधभक्ति धीरे-धीरे ख़त्म होगी.

Saturday, May 30, 2020

🌲 कबीर साहेब द्वारा विभीषण तथा मंदोदरी को शरण में लेना 🌲

     🙏🏻 ☂ बोध कथा ☂ 🙏🏻

🌲 कबीर साहेब द्वारा विभीषण तथा मंदोदरी को शरण में लेना 🌲
परमेश्वर मुनिन्द्र अनल अर्थात् नल तथा अनील अर्थात् नील को शरण में लेने के उपरान्त श्री लंका में गए। वहाँ पर एक परम भक्त चन्द्रविजय जी का सोलह सदस्यों का पुण्य परिवार रहता था। वह भाट जाति में उत्पन्न पुण्यकर्मी प्राणी थे। परमेश्वर मुनिन्द्र (कविर्देवजी) का उपदेश सुन कर पूरे परिवार ने नाम दान प्राप्त किया। परम भक्त चन्द्रविजय जी की पत्नी भक्तमति कर्मवती लंका के राजा रावण की रानी मन्दोदरी के पास नौकरी (सेवा) करती थी। रानी मंदोदरी को हँसी-मजाक अच्छे-मंदे चुटकुले सुना कर उसका मनोरंजन कराया करती थी। भक्त चन्द्रविजय राजा रावण के पास दरबार में नौकरी सेवा करता था। राजा की बड़ाई के गाने सुना कर प्रसन्न करता था।

भक्त चन्द्रविजय की पत्नी भक्तमति कर्मवती परमेश्वर से उपदेश प्राप्त करने के उपरान्त रानी मंदोदरी को प्रभु चर्चा जो सृष्टी रचना अपने सतगुरुदेव मुनिन्द्र जी से सुनी थी प्रतिदिन सुनाने लगी।

भक्तमति मंदोदरी रानी को अति आनन्द आने लगा। कई-कई घण्टों तक प्रभु की सत कथा को भक्तमति कर्मवती सुनाती रहती तथा मंदोदरी की आँखों से आंसु बहते रहते। एक दिन रानी मंदोदरी ने कर्मवती से पूछा आपने यह ज्ञान किससे सुना? आप तो बहुत अनाप-शनाप बातें किया करती थी। इतना बदलाव परमात्मा तुल्य संत बिना नहीं हो सकता। तब कर्मवती ने बताया कि हमने एक परम संत से अभी-अभी उपदेश लिया है। रानी मंदोदरी ने संत के दर्शन की अभिलाषा व्यक्त करते हुए कहा, आप के गुरु अब की बार आयें तो उन्हें हमारे घर बुला कर लाना। अपनी मालकिन का आदेश प्राप्त करके शीश झुकाकर सत्कार पूर्वक कहा कि जो आप की आज्ञा, आप की नौकरानी वही करेगी। मेरी एक विनती है कहते हैं कि संत को आदेश पूर्वक नहीं बुलाना चाहिए। स्वयं जा कर दर्शन करना श्रेयकर होता है और जैसे आप की आज्ञा वैसा ही होगा। महारानी मंदोदरी ने कहा कि अब के आपके गुरुदेव जी आयें तो मुझे बताना मैं स्वयं दर्शन करूंगी। परमेश्वर ने फिर श्री लंका में कृपा की। मंदोदरी रानी ने उपदेश प्राप्त किया। कुछ समय उपरान्त अपने प्रिय देवर श्री भक्त विभीषण जी को उपदेश दिलाया। भक्तमति मंदोदरी उपदेश प्राप्त करके अहर्निश प्रभु स्मरण में लीन रहने लगी। अपने पति रावण को भी सतगुरु मुनिन्द्र जी से उपदेश प्राप्त करने की कई बार प्रार्थना की परन्तु रावण नहीं माना तथा कहा करता था कि मैंने परम शक्ति महेश्वर मृत्युंज्य शिव जी की भक्ति की है। इसके तुल्य कोई शक्ति नहीं है। आपको किसी ने बहका लिया है।

कुछ ही समय उपरान्त वनवास प्राप्त श्री सीता जी का अपहरण करके रावण ने अपने नौ लखा बाग में कैद कर लिया। भक्तमति मंदोदरी के बार-बार प्रार्थना करने से भी रावण ने माता सीता जी को वापिस छोड़ कर आना स्वीकार नहीं किया। तब भक्तमति मंदोदरी जी ने अपने गुरुदेव मुनिन्द्र जी से कहा महाराज जी, मेरे पति ने किसी की औरत का अपहरण कर लिया है। मुझ से सहन नहीं हो रहा है। वह उसे वापिस छोड़ कर आना किसी कीमत पर भी स्वीकार नहीं कर रहा है। आप दया करो मेरे प्रभु। आज तक जीवन में मैंने ऐसा दुःख नहीं देखा था।

परमेश्वर मुनिन्द्र जी ने कहा कि बेटी मंदोदरी यह औरत कोई आम स्त्राी नहीं है। श्री विष्णु जी को शापवश पृथ्वी पर आना पड़ा है, वे श्री राजा दशरथ के पुत्रा रामचन्द्र अयोध्यावासी हैं। इनको 14 वर्ष का वनवास प्राप्त है तथा लक्ष्मी जी स्वयं सीता रूप बनाकर इनकी पत्नी रूप में वनवास में थी। उसे रावण एक साधु वेश बना कर धोखा देकर उठा लाया है। यह स्वयं लक्ष्मी ही सीता जी है। इसे शीघ्र वापिस करके क्षमा याचना करके अपने जीवन की भिक्षा याचना रावण करें तो इसी में इसका शुभ है। भक्तमति मंदोदरी के अनेकों बार प्रार्थना करने से रावण नहीं माना तथा कहा कि वे दो मस्करे जंगल में घूमने वाले मेरा क्या बिगाड़ सकते हैं। मेरे पास अनगिनत सेना है। मेरे एक लाख पुत्रा तथा सवा लाख नाती हैं। मेरे पुत्रा मेघनाद ने स्वर्ग राज इन्द्र को पराजित कर उसकी पुत्राी से विवाह कर रखा है। तेतीस करोड़ देवताओं को हमने कैद कर रखा है। तू मुझे उन दो बेसहारा फिर रहे बनवासियों को भगवान बता कर डराना चाहती है। इस स्त्राी को वापिस नहीं करूंगा।

मंदोदरी ने भक्ति मार्ग का ज्ञान जो अपने पूज्य गुरुदेव से सुना था, रावण को बहुत समझाया। विभीषण ने भी अपने बड़े भाई को समझाया। रावण ने अपने भाई विभीषण को पीटा तथा कहा कि तू ज्यादा श्री रामचन्द्र का पक्षपात कर रहा है, उसी के पास चला जा।

एक दिन भक्तमति मंदोदरी ने अपने पूज्य गुरुदेव से प्रार्थना की कि हे गुरुदेव मेरा सुहाग उजड़ रहा है। एक बार आप भी मेरे पति को समझा दो। यदि वह आप की बात को नहीं मानेगा तो मुझे विधवा होने का दुःख नहीं होगा।

अपनी बेटी मंदोदरी की प्रार्थना स्वीकार करके राजा रावण के दरबार के समक्ष खड़े होकर द्वारपालों से राजा रावण से मिलने की प्रार्थना की। द्वारपालों ने कहा ऋषि जी इस समय हमारे राजा जी अपना दरबार लगाए हुए हैं। इस समय अन्दर का संदेश बाहर आ सकता है, बाहर का संदेश अन्दर नहीं जा सकता। हम विवश हैं। तब पूर्ण प्रभु अंतध्र्यान हुए तथा राजा रावण के दरबार में प्रकट हो गए। रावण की दृष्टि ऋषि पर गई तो गरज कर पूछा कि इस ऋषि को मेरी आज्ञा बिना किसने अन्दर आने दिया है। उसे लाकर मेरे सामने कत्ल कर दो। तब परमेश्वर ने कहा राजन आप के द्वारपालों ने स्पष्ट मना किया था। उन्हें पता नहीं कि मैं कैसे अन्दर आ गया। रावण ने पूछा कि तू अन्दर कैसे आया? तब पूर्ण प्रभु मुनिन्द्र वेश में अदृश होकर पुनर् प्रकट हो गए तथा कहा कि मैं ऐसे आ गया। रावण ने पूछा कि आने का कारण बताओ। तब प्रभु ने कहा कि आप योद्धा हो कर एक अबला का अपहरण कर लाए हो। यह आप की शान व शूरवीरता के विपरीत है। यह कोई आम औरत नहीं है। यह स्वयं लक्ष्मी जी अवतार है। श्री रामचन्द्र जी जो इसके पति हैं वे स्वयं विष्णु हैं। इसे वापिस करके अपने जीवन की भिक्षा मांगों। इसी में आप का श्रेय है। इतना सुन कर तमोगुण (भगवान शिव) का उपासक रावण क्रोधित होकर नंगी तलवार लेकर सिंहासन से दहाड़ता हुआ कूदा तथा उस नादान प्राणी ने तलवार के अंधा धुंध सत्तर वार ऋषि जी को मारने के लिए किए। परमेश्वर मुनिन्द्र जी ने एक झाडू की सींक हाथ में पकड़ी हुई थी उसको ढाल की तरह आगे कर दिया। रावण के सत्तर वार उस नाजुक सींक पर लगे। एैसे आवाज हुई जैसे लोहे के खम्बे (पीलर) पर तलवार लग रही हो। सिंक टस से मस नहीं हुई। रावण को पसीने आ गए। फिर भी अपने अहंकारवश नहीं माना। यह तो जान लिया कि यह कोई आम ऋषि नहीं है। कहा कि मैंने आप की एक भी बात नहीं सुननी, आप जा सकते हैं।* परमेश्वर अंतरध्यान हो गए तथा मंदोदरी को सर्व वृतान्त सुनाकर प्रस्थान किया रानी मंदोदरी ने कहा गुरुदेव अब मुझे विधवा होने में कोई कष्ट नहीं होगा।

श्री रामचन्द्र व रावण का युद्ध हुआ। रावण का वध हुआ। जिस लंका के राज्य को रावण ने तमोगुण भगवान शिव की कठिन साधना करके, दस बार शीश न्यौछावर करके प्राप्त किया था वह क्षणिक सुख भी रावण का चला गया तथा नरक का भागी हुआ। इसके विपरीत पूर्ण परमात्मा के सतनाम साधक विभीषण को बिना कठिन साधना किए पूर्ण प्रभु की कृपा से लंकादेश का राज्य भी प्राप्त हुआ। हजारों वर्षों तक विभीषण ने लंका का राज्य का सुख भोगा तथा प्रभु कृपा से राज्य में पूर्ण शान्ति रही। सभी राक्षस वृति के व्यक्ति विनाश को प्राप्त हो चुके थे। भक्तमति मंदोदरी तथा भक्त विभीषण तथा परम भक्त चन्द्रविजय जी के परिवार के पूरे सोलह सदस्य तथा अन्य जिन्होंने पूर्ण परमेश्वर का उपदेश प्राप्त करके आजीवन मर्यादावत् सतभक्ति की वे सर्व साधक यहाँ पृथ्वी पर भी सुखी रहे तथा अन्त समय में परमेश्वर के विमान में बैठ कर सतलोक (शाश्वतम् स्थानम्) में चले गए। इसीलिए पवित्र गीता अध्याय 7 मंत्र 12 से 15 में कहा है कि तीनों गुणों (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी) की साधना से मिलने वाली क्षणिक सुविधाओं के द्वारा जिनका ज्ञान हरा जा चुका है, वे राक्षस स्वभाव वाले, मनुष्यों में नीच, दुष्कर्म करने वाले मूर्ख मुझ (काल-ब्रह्म) को भी नहीं भजते।

फिर गीता अध्याय 7 मंत्र 18 में गीता बोलने वाला (काल-ब्रह्म) प्रभु कह रहा है कि कोई एक उदार आत्मा मेरी (ब्रह्म की) ही साधना करता है क्योंकि उनको तत्वदर्शी संत नहीं मिला। वे भी नेक आत्माऐं मेरी (अनुत्तमाम्) अति अश्रेष्ठ (गतिम्) मुक्ति की स्थिति में आश्रित रह गए। वे भी पूर्ण मुक्त नहीं हैं। इसलिए पवित्रा गीता अध्याय 18 मंत्र 62 में कहा है कि हे अर्जुन तू सर्व भाव से उस परमेश्वर (पूर्ण परमात्मा तत् ब्रह्म) की शरण में जा। उसकी कृपा से ही तू परम शान्ति तथा सतलोक अर्थात् सनातन परम धाम को प्राप्त होगा।

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परब्रह्म के सात संख ब्रह्माण्डों की स्थापना

👇👇👇 कथा👇👇👇

परब्रह्म के सात संख ब्रह्माण्डों की स्थापना

कबीर परमेश्वर (कविर्देव) ने आगे बताया है कि परब्रह्म (अक्षर पुरुष) ने अपने कार्य में गफलत की क्योंकि यह मानसरोवर में सो गया तथा जब परमेश्वर (मैंनें अर्थात् कबीर साहेब ने) उस सरोवर में अण्डा छोड़ा तो अक्षर पुरुष (परब्रह्म) ने उसे क्रोध से देखा। इन दोनों अपराधों के कारण इसे भी सात संख ब्रह्माण्ड़ों सहित सतलोक से बाहर कर दिया। अन्य कारण अक्षर पुरुष (परब्रह्म) अपने साथी ब्रह्म (क्षर पुरुष) की विदाई में व्याकुल होकर परमपिता कविर्देव (कबीर परमेश्वर) की याद भूलकर उसी को याद करने लगा तथा सोचा कि क्षर पुरुष (ब्रह्म) तो बहुत आनन्द मना रहा होगा, वह स्वतंत्र राज्य करेगा, मैं पीछे रह गया तथा अन्य कुछ आत्माऐं जो परब्रह्म के साथ सात परब्रह्मसंख ब्रह्माण्डों में जन्म-मृत्यु का कर्मदण्ड भोग रही हैं, उन हंस आत्माओं की विदाई की याद में खो गई जो ब्रह्म (काल) के साथ इक्कीस ब्रह्माण्डों में फंसी हैं तथा पूर्ण परमात्मा, सुखदाई कविर्देव की याद भुला दी। परमेश्वर कविर् देव के बार-बार समझाने पर भी आस्था कम नहीं हुई। परब्रह्म (अक्षर पुरुष) ने सोचा कि मैं भी अलग स्थान प्राप्त करूं तो अच्छा रहे। यह सोच कर राज्य प्राप्ति की इच्छा से सारनाम का जाप प्रारम्भ कर दिया। इसी प्रकार अन्य आत्माओं ने (जो परब्रह्म के सात संख ब्रह्माण्डों में फंसी हैं) सोचा कि वे जो ब्रह्म के साथ आत्माऐं गई हैं वे तो वहाँ मौज-मस्ती मनाऐंगे, हम पीछे रह गये। परब्रह्म के मन में यह धारणा बनी कि क्षर पुरुष अलग होकर बहुत सुखी होगा। यह विचार कर अन्तरात्मा से भिन्न स्थान प्राप्ति की ठान ली। परब्रह्म (अक्षर पुरुष) ने हठ योग नहीं किया, परन्तु केवल अलग राज्य प्राप्ति के लिए सहज ध्यान योग विशेष कसक के साथ करता रहा। अलग स्थान प्राप्त करने के लिए पागलों की तरह विचरने लगा, खाना-पीना भी त्याग दिया। अन्य कुछ आत्माऐं जो पहले काल ब्रह्म के साथ गई आत्माओं के प्रेम में व्याकुल थी, वे अक्षर पुरूष के वैराग्य पर आसक्त होकर उसे चाहने लगी। पूर्ण प्रभु के पूछने पर परब्रह्म ने अलग स्थान माँगा तथा कुछ हंसात्माओं के लिए भी याचना की। तब कविर्देव ने कहा कि जो आत्मा आपके साथ स्वेच्छा से जाना चाहें उन्हें भेज देता हूँ। पूर्ण प्रभु ने पूछा कि कौन हंस आत्मा परब्रह्म के साथ जाना चाहता है, सहमति व्यक्त करे। बहुत समय उपरान्त एक हंस ने स्वीकृति दी, फिर देखा-देखी उन सर्व आत्माओं ने भी सहमति व्यक्त कर दी। सर्व प्रथम स्वीकृति देने वाले हंस को स्त्री रूप बनाया, उसका नाम ईश्वरी माया (प्रकृति सुरति) रखा तथा अन्य आत्माओं को उस ईश्वरी माया में प्रवेश करके अचिन्त द्वारा अक्षर पुरुष (परब्रह्म) के पास भेजा। (पतिव्रता पद से गिरने की सजा पाई।) कई युगों तक दोनों सात संख ब्रह्माण्डों में रहे, परन्तु परब्रह्म ने दुर्व्यवहार नहीं किया। ईश्वरी माया की स्वेच्छा से अंगीकार किया तथा अपनी शब्द शक्ति द्वारा नाखुनों से स्त्री इन्द्री (योनि) बनाई। ईश्वरी देवी की सहमति से संतान उत्पन्न की। इस लिए परब्रह्म के लोक (सात संख ब्रह्माण्डों) में प्राणियों को तप्तशिला का कष्ट नहीं है तथा वहाँ पशु-पक्षी भी ब्रह्म लोक के देवों से अच्छे चरित्र युक्त हैं। आयु भी बहुत लम्बी है, परन्तु जन्म - मृत्यु कर्माधार पर कर्मदण्ड तथा परिश्रम करके ही उदर पूर्ति होती है। स्वर्ग तथा नरक भी ऐसे ही बने हैं। परब्रह्म (अक्षर पुरुष) को सात संख ब्रह्माण्ड उसके इच्छा रूपी भक्ति ध्यान अर्थात् सहज समाधि विधि से की उस की कमाई के प्रतिफल में प्रदान किये तथा सत्यलोक से भिन्न स्थान पर गोलाकार परिधि में बन्द करके सात संख ब्रह्माण्डों सहित अक्षर ब्रह्म व ईश्वरी माया को निष्कासित कर दिया।

पूर्ण ब्रह्म (सतपुरुष) असंख्य ब्रह्माण्डों जो सत्यलोक आदि में हैं तथा ब्रह्म के इक्कीस ब्रह्माण्डों तथा परब्रह्म के सात संख ब्रह्माण्डों का भी प्रभु (मालिक) है अर्थात् परमेश्वर कविर्देव कुल का मालिक है।

श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी आदि के चार-चार भुजाएं तथा 16 कलाएं हैं तथा प्रकृति देवी (दुर्गा) की आठ भुजाएं हैं तथा 64 कलाएं हैं। ब्रह्म (क्षर पुरुष) की एक हजार भुजाएं हैं तथा एक हजार कलाएं है तथा इक्कीस ब्रह्माण्डों का प्रभु है। परब्रह्म (अक्षर पुरुष) की दस हजार भुजाऐं हैं तथा दस हजार कला हैं तथा सात संख ब्रह्माण्डों का प्रभु है। पूर्ण ब्रह्म (परम अक्षर पुरुष अर्थात् सतपुरुष) की असंख्य भुजाएं तथा असंख्य कलाएं हैं तथा ब्रह्म के इक्कीस ब्रह्माण्ड व परब्रह्म के सात संख ब्रह्माण्डों सहित असंख्य ब्रह्माण्डों का प्रभु है। प्रत्येक प्रभु अपनी सर्व भुजाओं को समेट कर केवल दो भुजाएं भी रख सकते हैं तथा जब चाहें सर्व भुजाओं को भी प्रकट कर सकते हैं। पूर्ण परमात्मा परब्रह्म के प्रत्येक ब्रह्माण्ड में भी अलग स्थान बनाकर अन्य रूप में गुप्त रहता है। यूं समझो जैसे एक घूमने वाला कैमरा बाहर लगा देते हैं तथा अन्दर टी.वी. (टेलीविजन) रख देते हैं। टी￾वी. पर बाहर का सर्व दृश्य नजर आता है तथा दूसरा टी.वी. बाहर रख कर अन्दर का कैमरा स्थाई करके रख दिया जाए, उसमें केवल अन्दर बैठे प्रबन्धक का चित्र दिखाई देता है। जिससे सर्व कर्मचारी सावधान रहते हैं।

इसी प्रकार पूर्ण परमात्मा अपने सतलोक में बैठ कर सर्व को नियंत्रित किए हुए हैं तथा प्रत्येक ब्रह्माण्ड में भी सतगुरु कविर्देव विद्यमान रहते हैं जैसे सूर्य दूर होते हुए भी अपना प्रभाव अन्य लोकों में बनाए हुए है।

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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। साधना चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे।

संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।

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सोचने वाली सच्ची बात

#पोस्ट_को_ध्यान_से_पढ़े..✍ 👇
एक चार ईट्टों की बनी माता को #भगवान मान लेंगे उस माता पर कुत्ता पेशाब करता है वह भगवान है! पत्थर की मूर्ति को पूजते हैं,पीरो मजारों को पूजते है जो बोल नहीं सकते #समाधान नहीं कर सकते. तीर्थों पर जाते हैं। क्या मिलता है,कुछ नहीं। गंगा मे नहाने से पाप कटते हैं तो सबसे पहले कछुवे मेंढक मछली सैकडों जीवों के कट जाने चाहिये वे तो गंगा मे ही रहते हैं । गंगा मे नहाने से तन का मैल दूर हो गया मन का मैल कैसे दूर करोगे.. उसके लिए कबीर साहेब कहते है।.. कबीर -पर्वत पर्वत मैं फिरा कारण अपने राम। राम सरीखे संत मिले, जिन सारे सब काम.. कबीर परमात्मा हमें समझाने के लिए एक trainer की तरह अपने उपर उदाहरण देकर कहते है मैंने भगवान को पर्वत पर्वत जंगलो में ढूंढा कहीं भगवान नही मिले.. राम जैसे ज्ञानी संत मिले उन संतो से मेरा हर काम सफल हो गया.. कबीर- तीर्थ जाये एक फल, #संत मिले अनेक फल पूर्ण संत के सतसंग से अनेक फल मिलते है मन का मैल दूर होता है आत्मा निर्मल होती है। पूर्ण संत की शरण लो वह पूर्ण गुरू आपको पूर्ण परमात्मा की भक्ति भी बतायेगा आपको ज्ञान भी मिलेगा और आपका समाधान भी करेगा.. पूर्ण संत के पास से आप खाली हाथ नही आ सकते आपको #ज्ञान मोक्ष मार्ग और समाधान मिलता है लेकिन इन पत्थरो को पूजने से कुछ नही मिलता.. वेद,गीता मे नहीं लिखा कि पत्थर तीर्थ पूजो..लोग गाय को पूजते है ये मानकर गाय मे 33 करोड़ देवी देवताओं का वास है, पूर्ण संत से हमें तत्वज्ञान मिलता है , पूर्ण परमात्मा की पूजा विधि मिलती है जिससे पूर्ण मोक्ष होगा.. हमारी रक्षा होगी?? सतनाम सारनाम गायत्री तीन तरह के मंत्र मिले.. जिनसे इतना कुछ मिला हमारे विकार दूर कर दिये वह हमारे लिए

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जीव के लक्षण

जीव के लक्षण :


धर्मदास जी बोले - हे परमात्मा कबीर साहिब ! जब सभी योनियों के जीव एक समान हैं । तो फ़िर सभी जीवों को एक सा ग्यान क्यों नहीं है ?


कबीर साहिब बोले - हे धर्मदास ! सुनो । जीवों की इस असमानता की वजह तुम्हें समझाकर कहता हूँ । चार खानि के जीव एक समान हैं । परन्तु उनकी शरीर रचना में तत्व विशेष का अन्तर है ।

 स्थावर खानि में सिर्फ़ एक ही तत्व होता है । ऊष्मज खानि में दो तत्व होते हैं । अण्डज खानि में तीन तत्व और पिण्डज खानि में चार तत्व होते हैं । इनसे अलग मनुष्य शरीर में 5 तत्व होते हैं ।


हे धर्मदास जी ! अब चार खानि का तत्व निर्णय भी जानों । अण्डज खानि में 3 तत्व - जल अग्नि और वायु हैं । स्थावर खानि में एक तत्व जल विशेष है । ऊष्मज खानि में दो तत्व वायु तथा अग्नि बराबर समझो । पिण्डज खानि में 4 तत्व अग्नि प्रथ्वी जल और वायु विशेष हैं । पिण्डज खानि में ही आने वाला मनुष्य - अग्नि वायु प्रथ्वी जल आकाश से बना है ।


तब धर्मदास जी बोले - हे बन्दीछोङ ! सदगुरु कबीर साहिब.. मनुष्य योनि में नर नारी तत्वों में एक समान हैं । परन्तु सबको एक समान ग्यान क्यों नहीं है । संतोष । क्षमा । दया । शील । आदि सदगुणों से कोई मनुष्य तो शून्य 0 होता है । तथा कोई इन गुणों से परिपूर्ण होता है । कोई मनुष्य पाप कर्म करने वाला अपराधी होता है । तो कोई विद्वान । कोई दूसरों को दुख देने वाले स्वभाव का होता है । तो कोई अति क्रोधी काल रूप होता है । कोई मनुष्य किसी जीव को मारकर उसका आहार करता है । तो कोई जीवों के प्रति दया भाव रखता है । कोई आध्यात्म की बात सुनकर सुख पाता है । तो कोई काल निरंजन के गुण गाता है । हे साहिब मनुष्यों में यह नाना गुण किस कारण से होते हैं ?


कबीर साहिब बोले - हे धर्मदास ! सुनो । मैं तुमसे मनुष्य योनि के नर नारी के गुण अवगुण को भली प्रकार से कहता हूँ । किस कारण से मनुष्य ग्यानी और अग्यानी भाव वाला होता है । वह पहचान सुनो ।

शेर । साँप । कुत्ता । गीदङ । सियार । कौवा । गिद्ध । सुअर । बिल्ली तथा इनके अलावा और भी अनेक जीव हैं । जो इनके समान हिंसक । पाप योनि । अभक्ष्य माँस आदि खाने वाले दुष्कर्मी । नीच गुणों वाले समझे जाते हैं । इन योनियों में से जो जीव आकर मनुष्य योनि में जन्म लेता है । तो भी उसके पीछे की योनि का स्वभाव नहीं छूटता । उसके पूर्व कर्मों का प्रभाव उसको अभी प्राप्त मानव योनि में भी बना रहता है । अतः वह मनुष्य देह पाकर भी पूर्व के से कर्मों में प्रवृत रहता है । ऐसे पशु योनियों से आये जीव नर देह में होते हुये भी प्रत्यक्ष पशु ही दिखायी देते हैं ।

जिस योनि से जो मनुष्य आया है । उसका स्वभाव भी वैसा ही होगा । जो दूसरों पर घात करने वाले क्रूर हिंसक पापकर्मी तथा क्रोधी विषैले स्वभाव के जीव हैं । उनका भी वैसा ही स्वभाव बना रहता है ।

हे धर्मदास जी ! मनुष्य योनि में जन्म लेकर ऐसे स्वभाव को मेटने का एक ही उपाय है कि किसी प्रकार सौभाग्य से सदगुरु मिल जायँ । तो वे ग्यान द्वारा अग्यान से उत्पन्न इस प्रभाव को नष्ट कर देते हैं । और फ़िर मनुष्य काग दशा ( विष्ठा मल आदि के समान वासनाओं की चाहत ) के प्रभाव को भूल जाता है । उसका अग्यान पूरी तरह समाप्त हो जाता है ।

तब हे भाई ! पूर्व पशु योनि और अभी की मनुष्य योनि का यह द्वंद छूट जाता है । सदगुरुदेव ग्यान के आधार हैं । वे अपने शरण में आये हुये जीव को ग्यान अग्नि में तपाकर एवं उपाय से घिस पीटकर सत्यग्यान उपदेश अनुसार उसे वैसा ही बना लेते हैं । और निरंतर साधना अभ्यास से उस पर प्रभावी पूर्व योनियों के संस्कार समाप्त कर देते हैं ।

हे धर्मदास ! जिस प्रकार धोबी वस्त्र धोता है । और साबुन मलने से वस्त्र साफ़ हो जाता है । ..तब वस्त्र में यदि थोङा सा ही मैल हो । तो वह थोङी ही मेहनत से साफ़ हो जाता है । परन्तु वस्त्र बहुत अधिक गन्दा हो । तो उसको धोने में अधिक मेहनत की आवश्यकता होती है । हे धर्मदास ! वस्त्र की भांति ही जीवों के स्वभाव को जानों । कोई कोई जीव जो अंकुरी होता है । ऐसा जीव सदगुरु के थोङे से ग्यान को ही विचार कर शीघ्र गृहण कर लेता है । उसे ग्यान का संकेत ही बहुत होता है । अधिक ग्यान की आवश्यकता नहीं होती । ऐसा शिष्य ही सच्चे ग्यान का अधिकारी होता है ।


तब धर्मदास जी बोले - हे साहिब ! यह तो थोङी सी योनियों की बात हुयी । अब आप चार खानि के जीवों की बात कहें । चार खानि के जीव जब मनुष्य योनि में आते हैं । उनके लक्षण क्या हैं ? जिसे जानकर मैं सावधान हो जाऊँ ।

  • कबीर साहिब जी बोले - हे धर्मदास सुनो । 4 खानों की 84 लाख योनियों में भरमाया भटकता जीव जब बङे भाग्य से मनुष्य देह धारण करने का अवसर पाता है । तब उसके अच्छे बुरे लक्षणों का भेद तुमसे कहता हूँ ।


जिसको बहुत ही आलस नींद आती है । तथा कामी क्रोधी और दरिद्र होता है । वह अण्डज खानि से आया है। हुआ होता है । जो बहुत चंचल होता है । और चोरी करना जिसे अच्छा लगता है । धन माया की बहुत इच्छा रखता है । दूसरों की चुगली निंदा जिसे अच्छी लगती है । इसी स्वभाव के कारण वह दूसरों के घर वन तथा झाङी में आग लगाता है । तथा चंचल होने के कारण कभी बहुत रोता है । कभी नाचता कूदता है । कभी मंगल गाता है । भूत प्रेत की सेवा उसके मन को बहुत अच्छी लगती है । किसी को कुछ देता हुआ देखकर वह मन में चिङता है । किसी भी विषय पर सबसे वाद विवाद करता है । ग्यान ध्यान उसके मन में कुछ नहीं आते । वह गुरु सदगुरु को नहीं पहचानता न मानता । वेद शास्त्र को भी नहीं मानता । वह अपने मन से ही छोटा बङा बनता रहता है । और यह समझता है कि मेरे समान दूसरा कोई नहीं है । उसके वस्त्र मैले तथा आँखे कीचङ युक्त और मुँह से लार बहती है । वह अक्सर नहाता भी नहीं है । जुआ चौपङ के खेल में मन लगाता है । उसका पांव लम्बा होता है । और कभी कभी वह कुबङा भी होता है । हे धर्मदास ! ये सब अण्डज खानि से आये मनुष्य के लक्षण हैं ।


हे धर्मदास ! अब ऊष्मज के बारे में कहता हूँ । यह जंगल में जाकर शिकार करते हुये बहुत जीवों को मारकर खुश होता है । इन जीवों को मारकर अनेक तरह से पकाकर वह खाता है । वह सदगुरु के नाम ग्यान की निंदा करता है । गुरु की बुराई और निंदा करके वह गुरु के महत्व को मिटाने का प्रयास करता है । वह शब्द उपदेश और गुरु की निंदा करता है । वह बहुत बात करता है । तथा बहुत अकङता है । और अहंकार के कारण बहुत ग्यान बनाकर समझाता है । वह सभा में झूठे वचन कहता है । टेङी पगङी बाँधता है । जिसका किनारा छाती तक लटकता है । दया धर्म उसके मन में नहीं होता । जो कोई पुण्य धर्म करता है । वह उसकी हँसी उङाता है । माला पहनता है । और चंदन का तिलक लगाता है । तथा शुद्ध सफ़ेद वस्त्र पहनकर बाजार आदि में घूमता है । वह अन्दर से पापी और बाहर से दयावान दिखता है । ऐसा अधम नीच जीव यम के हाथ बिक जाता है । उसके दाँत लम्बे तथा बदन भयानक होता है । उसके पीले नेत्र होते हैं ।


कबीर साहिब जी बोले - हे धर्मदास ! अब स्थावर खानि से आये जीव ( मनुष्य ) के लक्षण सुनो । इससे आया जीव भैंसे के समान शरीर धारण करता है । ऐसे जीवों की बुद्धि क्षणिक होती है । अतः उनको पलटने में देर नहीं लगती । वह कमर में फ़ेंटा बाँधता है । तथा सिर पर पगङी बाँधता है । तथा राज दरबार की सेवा करता है । और कमर में तलवार कटार बाँधता है । इधर उधर देखता हुआ मन से सैन ( आँख मारकर इशारा करना ) मारता है । परायी स्त्री को सैन से बुलाता है । वह मुँह से रसभरी मीठी बातें कहता है । जिनमें कामवासना का प्रभाव होता है । वह दूसरे के घर को कुदृष्टि से ताकता है । तथा जाकर चोरी करता है । पकङे जाने पर राजा के पास लाया जाता है । जब सारा संसार भी उसकी हँसी उङाता है । फ़िर भी उसको लाज नहीं आती । एक क्षण में ही वह देवी देवता की पूजा करने की सोचता है । दूसरे ही क्षण विचार बदल देता है । कभी उसका मन किसी की सेवा में लग जाता है । फ़िर जल्दी ही वह उसको भूल भी जाता है । एक क्षण में ही वह किताब ( कोई ) पढकर ग्यानी बन जाता है । एक क्षण में ही वह सबके घर आना जाना घूमना करता है । एक क्षण में ही बहादुर और एक क्षण में ही कायर भी हो जाता है । एक क्षण में ही मन में साहू ( धनी ) हो जाता है । और दूसरे क्षण में ही चोरी करने की सोचता है । एक क्षण में धर्म और दूसरे क्षण में अधर्म भी करता है । इस प्रकार क्षण प्रतिक्षण मन के बदलते भावों के साथ वह सुखी दुखी होता है । वह भोजन करते समय माथा खुजाता है । तथा फ़िर बाँह जाँघ पर रगङता है । भोजन करता है । फ़िर सो जाता है । जो जगाता है । उसे मारने दौङता है । और गुस्से से जिसकी आँखे लाल हो जाती हैं । और उसका भेद कहाँ तक कहूँ ।


हे धर्मदास ! अब पिण्डज खानि से आये जीव का लक्षण सुनो । पिण्डज खानि से आया जीव वैरागी होता है । तथा योग साधना की मुद्राओं में उनमनी समाधि का मत आदि धारण करने वाला होता है । और वह जीव वेद आदि का विचार कर धर्म कर्म करता है । वह तीर्थ वृत ध्यान योग समाधि में लगन वाला होता है । उसका मन गुरु के चरणों में भली प्रकार लगता है । वह वेद पुराण का ग्यानी होकर बहुत ग्यान करता है । और सभा में बैठकर मधुर वार्तालाप करता है । राज मिलने का तथा राज के कार्य करने का और स्त्री सुख को बहुत मानता है । कभी भी अपने मन में शंका नहीं लाता । और धन संपत्ति के सुख को मानता है । बिस्तर पर सुन्दर शैया बिछाता है । उसे उत्तम शुद्ध सात्विक पौष्टिक भोजन बहुत अच्छा लगता है। वह पुण्य कर्म में धन खर्च करता है । उसकी आँखों में तेज और शरीर में पुरुषार्थ होता है । स्वर्ग सदा उसके वश में है । वह कहीं भी देवी देवता को देखता है । तो माथा झुकाता है उसका ध्यान सुमरन में बहुत मन लगता है । तथा वह सदा गुरु के अधीन रहता है । 

पुस्तक लिंक👇
 https://www.jagatgururampalji.org/gyan_ganga_hindi.pdf

🙏🏻सत साहेब जी 🙏🏻

परमात्मा का सन्देश

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परमात्मा का सन्देश


#सबका मालिक एक कौन है ?
#सृष्टि की रचना किसने व् कैसे की ? 
#ब्रह्मा विष्णु महेश के माता पिता कौन है ?
#शेरावाली माता दुर्गाजी का पति कौन है और अगर नहीं है सिंदूर श्रृंगार और लाल चुनरिया किस वास्ते ?
#हमको जन्म देने और मारने में किस प्रभु का स्वार्थ है ? हम क्यों जन्मते मरते है ?
#84 लाख योनियां क्यों बनायीं गयी है ? क्या त्रिदेव दुर्गाजी 33 कोटी देवी देवता का दिल पत्थर का है जो इतना कष्ट और मार काट दिया हुआ है जीवों को ?
   #रेप के समय कोई भगवान क्यों न मदद करता ??
#मानव जीवन का मुख्य उद्देश्य क्या है ? 
#परमात्मा की परिभाषा क्या है ? 
#क्या आपको पता है गीता का ज्ञान काल ने श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रवेश हो कर बोला है ? पर क्यों और गीता में क्या राज की बातें है जो आज तक कोई समझ न पाया !! 
#श्री गुरु नानक देव जी के गुरु कौन थे ? 
#हम सभी देवी देवताओं की इतनी भक्ति करते है फिर भी दुःखी क्यों है ?
#काल की परिभाषा क्या है ?
#सतयुग में राम कृष्ण नहीं थे तब किसका धरते ध्यान ?
#सच्चा ज़िहाद क्या होता है ? काफ़िर किसको कहते है ? 
#एक तू सच्चा एक तेरा नाम सच्चा यह वाक्य किसके वास्ते लिखा गया है ? 
#गर्भ में तो सब एक है फ़िर कलयुग में किसने और क्यों बाटा एक मानव को हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई व् अनेक पंथों और सम्प्रदायों में ? 
#अमेरिका जनगणना विभाग अनुसार रोज पृथ्वी पे 1,52,640 मनुष्यों की मृत्यु हो जाती है क्यों ? 
#युद्ध होने का कारण क्या है ? 
#अगर आप तृतीय विश्व युद्ध में अपनी और अपनों की जान बचाना चाहते है तो इस post को पढ़े और forward करें | 
आपके 02 second पूरी मानवता को बहुत कुछ मदद दे सकते है !! 
#एक विश्व को 209 देशों में और 2700 से ज्यादा भाषाओं में बाटने का मकसद क्या है ? 
# science और technology का आविष्कार परमात्मा ने किस मकसद से करवाया है ?
#दुर्गाजी तो प्रकति देवी है Nature फिर ये बाढ़, सुखा , भुखमरी , भूकम्प , हैजा जैसी प्राकृतिक आपदाएं क्यों ?
#मोक्ष क्या होता है और मुक्ति लेना क्यों जरुरी है ?
#मुसलमान किसे कहते है ?
#असली ब्राह्मण कौन है ?
#सिक्ख किसे कहते है ? सिख और सरदार में अंतर क्या है ?
#परमात्मा साकार है या निराकार ? 
#अल्लाह - ख़ुदा - रब - भगवान् के दीदार सम्भव है कि नहीं ? 
#परमात्मा हमें दिखाई क्यों न देते ? 
#ब्रह्मा विष्णु महेश दुर्गाजी और 33 करोड़ देवी देवता मिल कर भी मौत नहीं रोक पा रहे !! क्या कारण है क्या ये मौत रोकने में समर्थ नहीं ? तो कौन सी शक्तियां इनसे ऊपर है ? या ये मौत रोकना ही नहीं चाहते ?
#ब्रह्मा विष्णु महेश भी अजर अमर नहीं ! पेज 123 श्रीमद्देविभागवादपुरान,
 गीताप्रेस गोरखपुर ।
# जानिये श्री गुरु नानक देव जी के 03 दिनों तक बेई नदी में गायब होने का राज ! 
# जानिये मृत्य उपरान्त कबीर साहेब के शरीर गायब हो जाने का राज !
# और गुरु नानक देवी जी ने ये क्यों कहा पेज 721 गुरु ग्रन्थ साहिब पे कि - " हक्का कबीर करीम तू बेऐब परवरदिगार " !!
 #क़ुरआन शरीफ़ के सूरत फुर्कानि 25 आयत 52 पे लिखा है : फला

सच्चा सतगुरु की पहचान

पूर्ण गुरु की पहचान।


पूर्ण गुरु की पहचान।

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भारतीय संस्कृति बहुत पुरातन है और इसमें गुरु बनाने की परंपरा भी बहुत पुरानी रही है। प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में एक गुरु अवश्य बनाता है ताकि गुरु उनके जीवन को नई सकारात्मक दिशा दिखा सके। जिस पर चलकर व्यक्ति अपने जीवन को सफल व सुखमय बना सके एवं मोक्ष प्राप्त कर सके।

गुरु की महत्ता को बताते हुए परमेश्वर कबीर जी कहते हैं कि

कबीर, गुरु बिन माला फेरते, गुरु बिन देते दान।

गुरु बिन दोनों निष्फल हैं, पूछो वेद पुराण।।

कबीर, राम कृष्ण से कौन बड़ा, उन्हों भी गुरु कीन्ह।

तीन लोक के वे धनी, गुरु आगे आधीन।

भावार्थ :- कबीर परमेश्वर जी हमें बता रहे हैं कि बिना गुरु के हमें ज्ञान नहीं हो सकता है। गुरु के बिना किया गया नाम जाप, भक्ति व दान- धर्म सभी व्यर्थ है।

■ उपर्युक्त लिखी गई कुछ पंक्तियां एवं दोहों से हमें यह तो समझ में आ गया कि बिना गुरु के ज्ञान एवं मोक्ष संभव नहीं है।

वर्तमान में व्यक्ति के सामने सबसे बड़ी समस्या है कि यदि वह गुरु धारण करना चाहे तो वह किसे गुरु बनाए? उसकी सामर्थ्य और शक्ति का मापदंड कैसे निर्धारित किया जाए । वर्तमान में बड़ी संख्या में गुरु विद्यमान हैं और अधिकतर से धोखा ही धोखा है ऐसे हालात में क्या हम एक सच्चे और नेक गुरु को खोज पाएंगे? आज पूरे विश्व में धर्म गुरुओं व संतों की बाढ़ सी आई हुई है । मुमुक्षु को समझ में नहीं आता है कि सच्चा (अधिकारी) सतगुरु कौन है जिनसे नाम दीक्षा लेने से उसका मोक्ष संभव हो सकता है?

पवित्र सदग्रंथों के आधार पर सच्चे सद्गुरु की पहचान

जो गुरु शास्त्रों के अनुसार भक्ति करता है और अपने अनुयाइयों अर्थात् शिष्यों द्वारा करवाता है वही पूर्ण संत है। चूंकि भक्ति मार्ग का संविधान धार्मिक शास्त्र जैसे - कबीर साहेब की वाणी, नानक साहेब की वाणी, संत गरीबदास जी महाराज की वाणी, संत धर्मदास जी साहेब की वाणी, वेद, गीता, पुराण, कुरआन, पवित्र बाईबल आदि हैं। जो भी संत शास्त्रों के अनुसार भक्ति साधना बताता है और भक्त समाज को मार्ग दर्शन करता है तो वह पूर्ण संत है अन्यथा वह भक्त समाज का घोर दुश्मन है जो शास्त्रों के विरूद्ध साधना करवा रहा है। इस अनमोल मानव जन्म के साथ खिलवाड़ कर रहा है। ऐसे गुरु या संत को भगवान के दरबार में घोर नरक में उल्टा लटकाया जाएगा।
सबसे पहले हम पवित्र गीता जी से प्रमाण देखते हैं। गीता अध्याय 15 श्लोक 1 में गीता ज्ञान दाता ने तत्वदर्शी संत (सच्चा सतगुरु) की पहचान बताते हुए कहा है कि वह संत संसार रूपी वृक्ष के प्रत्येक भाग अर्थात जड़ से लेकर पत्ती तक का विस्तारपूर्वक ज्ञान कराएगा।

यजुर्वेद अध्याय 19 के मंत्र 25 व 26 में लिखा है कि वेदों के अधूरे वाक्यों अर्थात सांकेतिक शब्दों व एक चौथाई श्लोकों को पूरा करके विस्तार से बताएगा। वह तीन समय की पूजा बताएगा। सुबह पूर्ण परमात्मा की पूजा, दोपहर को विश्व के देवताओं का सत्कार एवं संध्या आरती अलग से बताएगा वह जगत का उपकारक संत होता है

तीन बार मे नाम जाप करने का प्रमाण

 अध्याय 17 के श्लोक 23 में लिखा है कि 

ऊं, तत् , सत् , इति, निर्देश: , ब्रह्मण: , त्रिविध: , समृत: ।

ब्राह्मणा: , तेन, वेदा: , च, यज्ञा: , च , विहिता: , पुरा।






भवार्थ:- (ऊं) ब्रह्म का (तत्) यह सांकेतिक मंत्र परब्रह्म का (सत्) पूर्णब्रह्म का (इति) ऐसे यह (त्रिविध:) तीन प्रकार के (ब्रह्मण:) पूर्ण परमात्मा के नाम सिमरन का (निर्देश:) संकेत( समृत:) कहा है (च) और (पुरा) सृष्टि के आदिकाल में (ब्राह्मण:) विद्वानों ने बताया कि (तेन) उसी पूर्ण परमात्मा ने (वेदा:) वेद (च) तथा (यज्ञा:) यज्ञ आदि (विहिता:) रचे।

यजुर्वेद अध्याय 19 मंत्र 30 मे:-

व्रतेन दीक्षाम् आप् नोति दीक्षया आप् नोति दक्षिणाम् ।

दक्षिणा श्रध्दाम् आप् नोति श्रध्दया सत्यम् आप्यते।

भावार्थ:- इस वेद मंत्र में सच्चे गुरु की पहचान बताते हुए कहा गया है की सच्चा सतगुरु उसी व्यक्ति को शिष्य बनाता है जो सदाचारी रहे। अभक्ष्य पदार्थों का सेवन व नशीली वस्तुओं का सेवन न करने का आश्वासन देता है ।

महान संतों के आधार पर सच्चे सतगुरु की पहचान क्या है?

कबीर साहेब सच्चे सद्गुरु की पहचान बताते हुए अपनी वाणी में कहते हैं कि

जो मम संत सत उपदेश दृढ़ावै (बतावै), वाके संग सभि राड़ बढ़ावै।

या सब संत महंतन की करणी, धर्मदास मै तो से वर्णी।।

भावार्थ:- कबीर साहेब अपने प्रिय शिष्य धर्मदास को इस वाणी में यह समझा रहे हैं कि जो मेरा संत अर्थात् सच्चा सतगुरु जब समाज को सत भक्ति मार्ग बताएगा तब वर्तमान के धर्मगुरु उसके विरोध में खड़े होकर राजा व प्रजा को गुमराह करके उसके ऊपर अत्याचार करेंगे एंव उसके साथ सभी संत व महंत झगड़ा करेंगे।

गरीब दास जी महाराज अपनी वाणी में कहते हैं कि

सतगुरु के लक्षण कहूं, मधुरे बैन विनोद।
चार वेद षट् शास्त्र, कहै आठरा बोध

अर्थात जो गुरु चार वेद छह शास्त्र और 18 पुराणों आदि सभी सद्ग्रंथों का पूर्ण जानकार होगा वही सच्चा सतगुरु होगा।

गरीब दास जी महाराज अपनी अमृतवाणी में लिखते हैं कि

गरीब स्वांसा पारस भेद हमारा, जो खोजे सो उतरे पारा।
स्वासा पारा आदि निशानी, जो खोजे सो होय दरबानी।।

स्वांसा ही में सार पद , पद में स्वांसा सार।
दम देही का खोज करो, आवागमन निवार।।

जैसा कि हमने ऊपर में पवित्र श्रीमद्भगवद गीता के अध्याय 17 के श्लोक 23 मे प्रमाण देखा कि सच्चा सतगुरु तीन बार में नाम जाप देते हैं । इसी का प्रमाण अब हम संतों की वाणी में देखते हैं।

गुरु नानक देव जी की वाणी में प्रमाण:-

चहुऊं का संग , चहुऊं का मीत , जामै चारि हटावै नित।

मन पवन को राखै बंद , लहे त्रिकुटी त्रिवेणी संध।।

अखण्ड मण्डल में सुन्न समाना , मन पवन सच्च खण्ड टिकाना।

अर्थात पूर्ण सतगुरु (सच्चा सतगुरु) वही है जो 3 बार में नाम दें और स्वांस की क्रिया के साथ सुमिरन का तरीका बताएं जिससे जीव का मोक्ष संभव हो सके। सच्चा सतगुरु तीन प्रकार के मंत्रों को तीन बार में उपदेश करेगा इसका वर्णन कबीर सागर ग्रंथ पृष्ठ नंबर 265 बोध सागर में भी मिलता है ।

तो चलिए हम वर्तमान में उपस्थित कुछ संतो के विचार व उनके अध्यात्मिक ज्ञान को लेते हैं और जांच करते हैं कि उपर्युक्त सभी प्रमाण किन महान संतों पर बैठता है।

प्रश्न:- क्या परमात्मा अपने साधकों को पाप से मुक्त कर सकता है अर्थात प्रारब्ध के पाप कर्मों को नष्ट कर सकता है या नहीं ?

भारत देश के तमाम धर्मगुरुओं जैसे

श्री आसाराम जी महाराज

श्री शिव दयाल जी महाराज

श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज

श्री रुक्मणी कृष्ण प्रभु जी महाराज

जैन साध्वी वैभवश्री जी

श्री तुलसीदास जी महाराज

इन सभी का मानना है कि साधक को प्रारब्ध के पाप कर्म भोगने ही पड़ेंगे।

जबकि संत रामपाल जी महाराज ने सद्ग्रंथों से यह प्रमाणित करके बताया है कि परमात्मा साधक के घोर से घोर पाप को भी काट कर उनकी आयु 100 वर्ष कर देता है।

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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। साधना चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे।

संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।

 अधिक जानकारी के लिए पढ़िए पुस्तक ज्ञान गंगा।
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आखिर क्यों मनाते हैं दिवाली

क्यों और कैसे मनाते हैं दिवाली का त्यौहार ?   दिवाली को त्यौहार रूप में कार्तिक माह की अमावस्या को मनाया जाता है। दिवाली से दो दिन पहले धनते...